आरक्षण पर राजनीति

आरक्षण की राजनीति के बजाय रोजगार देने के प्रयत्न करने होंगे । मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार ने आते ही पिछड़े वर्गको १४ से बढ़ाकर २७ प्रतिशत आरक्षण की सुविधा अध्यादेश के जरिए दी थी। इसका उददेश्य स्वाभाविकरूप से पिछड़े वर्ग की जातियों के मतदाताओं को वोट की दृष्टि से लुभाना था। किंतु इस पर जबलपुर उच्च न्यायालय ने प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि न्यायालयने इसे पूरी तरह से खारिज नहीं किया था। लेकिन अबउच्च न्यायालय ने राज्य सेवा के लिए निकाली गई भर्तियों में २७ फीसदी ओबीसी को दिए आरक्षण पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति एके मित्तल एवं विजय कुमार शुक्ला की पीठ ने कहा है कि ओबीसी को १४ प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। क्योंकि इसका योगफल ६३ फीसदी हो जाता है, जो कि संवैधानिक प्रावधान के सर्वथा विपरीत है। सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश के मुताबिक ५० प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण का प्रावधान नहीं किया जा सकता। वर्तमान में अनुसूचित जाति के लिए १६, अनुसूचित जनजाति के लिए २० और पिछड़ा वर्ग के लिए १४ प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान सरकारी नौकरियों और शिक्षा में है। यह संविधान के अनुच्छेद १६ में वर्णित प्रावधान का पालन करता है। इस आरक्षण को बढ़ाने से पहले पिछड़ा वर्ग आयोग से भी सहमति नहीं ली गई थी। यह निर्णय आशिता दुबे की याचिका पर दिया गया है। दरअसल, राज्य सरकार ने आरक्षण का यह प्रावधान ८ मार्च २०१९ को तब किया, जब किसी भी कोने से पिछड़े वर्ग की किसी भी जाति ने आरक्षण की मांग नहीं उठाई थी। गोया साफ है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में इस सौगात को भुनाने की मंशा पालने की कोशिश की थी, क्योंकि मध्य प्रदेश में लोकसभा की २९ सीटों में से भाजपा को २८ सीटों पर जीत मिली थी। यहां तक कि ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपनी परंपरागत सीट गुना से चुनाव हार गए थेबमुश्किल छिंदवाड़ा स कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ३५००० मतों से चुनाव जीत पाए थे। साफ है, अब आरक्षण के झुनझुने जीत के पर्याय नहीं रह गए हैं। निकट भविष्य में होने वाले ग्राम पंचायत व नगरीय निकाय चुनाव में भी कांग्रेस कोई बड़ा लाभ आरक्षण देने से ले पाएगी, यह कहना मुश्किल है। हालांकि नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव दलों केचुनाव चिह्न पर नहीं लड़े जाएंगे, यह फैसला कमलनाथ सरकार पहले ही ले चुकी है। मध्य प्रदेश में यादव, धाकड़, गुर्जर, रावत, काछी और सोनी समाज सबसे बडे पिछड़े जातीय समूह हैं। इनमें भी यादव २० और सोनी जाति की आठ प्रतिशत आबादी है। शेष अन्य जातियां हैंप्रदेश की सभी २९ लोकसभा सीटों पर २६ से लेकर ६० फीसदी तक आबादी पिछड़े वर्ग की है। आर्थिक रूप से सक्षम व दबंग जातियों को एक-एक करके आरक्षण के दायरे मेंलाने की कोशिशें देशभर में हो रही हैं। गौरतलब है कि जिन राज्यों ने भी पिछड़े वर्ग के कोटे में नए जाति समूहों को आरक्षण की सुविधा दी है, वह न्याय की कसौटी पर खरी नहीं उतरी। बावजूद आरक्षण कोटा बढ़ाए जाने के प्रावधान राज्य सरकारें करने में लगी हैं। नतीजतनआरक्षण के ज्यादातर नए उपाय यथास्थिति में हैं। हालात ये हो गए हैं कि आरक्षण का अतिवाद अब हमारे राजनीतिज्ञों में वैचारिक पिछड़ापन बढ़ाने का काम कर रहा हैनतीजतन रोजगार व उत्पाद के नए अवसर पैदा करने के बजाय, हमारे नेता नई जातियां व उपजातियां खोजकर उन्हें आरक्षण के लिए उकसाने का काम कर रहे हैं। आरक्षण के टोटके छोड़ने के बजाय अच्छा हो कि सत्तारूढ़ नेता रोजगार के अवसर उपलब्ध नौकरियों में ही तलाशने की शुरुआत कर दें।